होली शुभ मुहूर्त-
होली का उत्सव – 18 मार्च 2022, दिन शुक्रवार को आप दिन भर मना सकतें हैं.
होलिकादहन- 17 मार्च दिन गुरुवार .
होली मनाने के संबंद्ध में कई कथाएं प्रचलित है. इनमे से सबसे महत्वपूर्ण कथा है भक्त प्रहलाद की. इस कथा से आप सभी अवश्य परिचित होंगे. परन्तु फिर भी हम निचे इस कथा को संक्षेप में प्रस्तुत कर रहें हैं.इस कथा के अनुसार प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नामक एक बलशाली असुर राज करता था.हिरण्यकश्यप खुद को भगवान समझता था. वह खुद को इस श्रृष्टि में सर्वश्रेष्ठ समझता था. भगवान श्री विष्णु के प्रति उसके मन में अत्यंत ही बैर भाव था.हिरण्यकश्यप के पुत्र का नाम प्रहलाद था. प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था.
प्रहलाद को कई तरीकों से समझाया गया की भगवान श्री विष्णु की भक्ति न करे. अपने पिता हिरण्यकश्यप की भक्ति करे.
परन्तु प्रहलाद का मन हमेशा ही श्री विष्णु की भक्ति में ही लगा रहता. उसे तरह तरह से दण्डित किया गया. ताकि वह श्री विष्णु की भक्ति छोड़ दे. परन्तु प्रहलाद भगवान श्री विष्णु की भक्ति में ही लगा रहा.हिरण्यकश्यप की एक बहन थी, जिसका नाम होलिका था. उसे वरदान प्राप्त था की अग्नि उसे नहीं जला सकती है.हिरण्यकश्यप के आदेश के अनुसार होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि पर बैठ गई.परन्तु प्रहलाद को इससे कुछ भी नहीं हुआ और होलिका जल कर भष्म हो गई.
उस घटना की याद में प्रत्येक वर्ष हम सब होलिका दहन मनाते हैं. और भक्त प्रहलाद के विष्णु भक्ति के कारण बचने की ख़ुशी में होली मनातें हैं.अंत में भगवान श्री विष्णु ने नरसिंह रूप धर कर हिरण्यकश्यप का वध किया.
होलिका दुष्ट और नकारात्मक शक्ति के प्रतिक के रूप में जलाई जाती है.
होली प्रहलाद की भक्ति, ख़ुशी और उल्लास के रूप में मनाई जाती है
अन्य मान्यताएं–
इस कथा के अतिरिक्त होली का उत्सव भगवान श्री कृष्ण से भी जुड़ा हुआ है. मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने राक्षसी पूतना का वध किया था. इस ख़ुशी में होली मनाई जाती है.यह भगवान श्री कृष्ण के रासलीला से भी जुड़ा हुआ है.होली कुछ मायनों में भगवान शिव से भी जुड़ा हुआ है.एक मान्यता के अनुसार इस दिन कामदेव का पुनर्जन्म हुआ था.
होली का महत्व (Holi Tyohar Ka Mahatwa)–
होली रंगों का और खुशीयों का उत्सव है.इस दिन हम सब बैर भाव मिटाकर एक दुसरे को रंग लगातें हैं और गले मिलतें हैं.
होली का उत्सव समाज में दोस्ती और भाईचारा को बढ़ावा देने वाला उत्सव है.होली का उत्सव जीवन में खुशियाँ लेकर आता है.धार्मिक रूप से भी होली का बहुत अधिक महत्व है.
यह नकारात्मकता परसकारात्मकता की विजय का प्रतिक है.
होली का उत्सव भगवान श्री कृष्ण की भक्ति से जुड़ा हुआ है.
भगवान श्री कृष्ण से संबंधित जगहों की होली काफी प्रसिद्द है.मथुरा, वृन्दावन, बरसाना, गोवर्धन, गोकुल की होली सम्पूर्ण विश्व में अत्यंत ही प्रसिद्ध है.
बरसाना की लट्ठमार होली तो बहुत ही रोचक है.
होली का त्यौहार कैसे मनाएं? (Holi Ka Tyohar Kaise Manaye)–
होली से एक दिन पहले होलिका दहन होता है. इस दिन आप अग्नि की पूजा करें.होलिका दहन की अग्नि की प्रक्रिमा करना भी अत्यंत ही शुभ माना जाता है.दुसरे दिन प्रातः काल स्नान आदि करने के पश्चात अपने इष्ट देवों को रंग और अबीर अर्पित करें.बहुत जगह होली के दिन अपने इष्ट देव देवी को प्रसाद का भोग लगाया जाता है.उसके पश्चात आप सबसे पहले अपने से बड़े सभी के चरणों में अबीर भी लगाएं.उसके पश्चात आप अपने मित्रों और रिश्तेदारों के साथ होली खेल सकतें हैं.होली के रंगों में प्राकृतिक रंगों का ही प्रयोग करना अच्छा होता है. केमिकल वाले रंगों का प्रयोग नहीं करें.किसी को भी जबरदस्ती रंग नहीं लगाएं. सभी के साथ प्रेम और आदर के साथ पेश आयें.
होली की लोकप्रियता–
होली भारत के साथ विश्व के अन्य देशों में भी अत्यंत ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है.यह रंगों का और एक दुसरे से खुशीयों को बांटने का त्यौहार है.हम सब भारतियों का तो होली एक अत्यंत ही प्रमुख त्यौहार है.होली को हम सब रंगों का त्यौहार कहतें हैं.यह त्यौहार हम सबके जीवन को रंगीन बनाने आती है. वैसे भी हमारा देश भारत तो त्योहारों का देश है.होली हम सबके जीवन को खुशियों से भर देती है.
होली राग और रंग का त्यौहार माना जाता है. इस त्यौहार में रंगों के साथ-साथ संगीत का भी काफी महत्व है.यह मुख्यतः दो दिनों का त्यौहार है. पहले दिन होलिका दहन होता है और उसके दुसरे दिन होली मनाई जाती है.होली के दिन हम सब एक दुसरे को रंग, अबीर और गुलाल लगातें हैं. एक दुसरे से गले मिलतें हैं और खुशियाँ बांटते हैं.इस दिन कई तरह के पकवान बनाये जातें हैं. जिसे हम खुद भी खातें हैं और अपने दोस्तों रिश्तेदारों को भी खिलातें हैं.
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उत्तर भारत में होली –
उत्तर भारत में, होली तीन दिनों तक मनाए जाने वाला त्यौहार है, होली रंगों के त्यौहार के नाम से प्रसिद्ध है। दिवाली के बाद, होली को हिंदू कैलेंडर का दूसरा सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है। होली शब्द होलिका भक्त प्रहलाद की बुआ, राक्षस राजा हिरण्यकशिपु की बड़ी बहन से निकला है। माना जाता है कि इस त्यौहार की शुरुआत प्रहलादपुरी मंदिर, पाकिस्तान से हुई थी।
होली संबंधित अन्य नाम–
होरी, रंगवाली होली, धुलेटी, धुलण्डी, होलिका दहन, छोटी होली
होलिका दहन (17 March 2022)-
तिथि: फाल्गुन शुक्ला पूर्णिमा
होलिका दहन को छोटी होली, बसंत पूर्णिमा और फाल्गुन पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, तथा दक्षिण भारत में काम दहन के नाम से भी जानते हैं। पहले दिन होलिका दहन का मुहूर्त सूर्यास्त के बाद अग्नि प्रज्वलन का होता है। जो कि मुख्य होली के दिन जिसमें रंगों से खेलते हैं उससे एक दिन पहले ही होता है। अतः अगले दिन सुबह लोग सूखे और गीले रंगों से होली खेलना प्रारंभ करते हैं।
धुलण्डी (18 March 2022)-
तिथि: चैत्र कृष्णा प्रतिपदा
होली के दूसरे दिन, लोग विभिन्न रंगों के गुलाल या रंगीन पानी से एक दूसरे को रंग लगते हैं, रंगों में सराबोर की इस प्रक्रिया को प्रायः होली खेलना कहा जाता है। रंगवाली होली जो मुख्य होली दिवस है, इसे धुलण्डी या धुलेंडी के नाम से उच्चारित किया जाता है। धुलंडी के अन्य कम लोकप्रिय नाम धुलेटी, धुलेती भी हैं। आज के दिन का सबसे लोकप्रिय नारा बुरा ना मानो होली है।
दूज (20 March 2022)-
तिथि: चैत्र कृष्णा द्वितीया
दीवाली पर भाई दूज के समान ही, होली के बाद द्वितीया आपसी मेल-झोल का दिन है। ब्रज क्षेत्र में होली दो दिन खेली जाती है। दूसरे दिन की शाम को लोग नई वस्त्र पहन कर दोस्तों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों से मिलकर मिठाइयां बाँटते हैं। होली मिलन की शुरुआत इसी परंपरा से प्रारंभ हुई है। दूज के इस दिन को भाई दूज, भ्रात्रि द्वितीया तथा दूजी भी जाना जाता है।
माघ पूर्णिमा
तिथि: माघ शुक्ला पूर्णिमा
होली से ठीक एक महिने पूर्व माघ शुक्ला पूर्णिमा के दिन से, होली मनाने वाले लोग, अपने आस-पास के सबसे पवित्र स्थान का चयन करके, वहाँ होलिका दहन से सम्वन्धित सामिग्री को एकत्रित करके रखना प्रारंभ कर देते हैं। फिर इसी पवित्र जगह से होलिका दहन आरंभ होते हुए सभी घरों तक पहुँचता है।
फुलेरा दूज
तिथि: फाल्गुन शुक्ल द्वितीया
फाल्गुन माह की शुक्ला द्वितीया को मनायी जाने वाली फुलेरा दूज, होली आगमन का प्रतीक मानी जाती है। उत्तर भारत के गांवों में फुलेरा दूज का उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। फुलेरा दूज के बाद से ही होली की तैयारियां शुरू कर दीं जातीं हैं।
होली उत्सव के प्रसिद्ध स्थान
ब्रज क्षेत्र भगवान श्री कृष्ण के बचपन की क्रिया-कलापों का स्थान है, इसलिए मथुरा, वृंदावन, गोवर्धन, गोकुल, नंदगांव और बरसाना की होली संपूर्ण बिश्व में प्रसिद्ध हैं। बरसाना की पारंपरिक लठमार होली देखने के लिए दूर-दूर से लोग एकत्रित होते हैं, और इसका आनंद लेते है।
प्रहलादपुरी मंदिर
एसा माना जाता है, कि प्रहलादपुरी का मूल मंदिर हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद जी द्वारा बनाया गया था। प्रहलादपुरी मंदिर पाकिस्तान के मुल्तान शहर में स्थित एक प्राचीन हिंदू मंदिर है। इस मंदिर का नाम भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद जी के नाम पर रखा गया है और यह भगवान नरसिंह को समर्पित है। वर्तमान में यह खंडहर है, सन् 1992 में यह मंदिर पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा तोड़ दिया गया था।
रंग पंचमी 22 March 2022
तिथि: चैत्र कृष्णा पंचमी
चैत्र के पाँचवे दिन मनाये जाने वाली होली के त्यौहार को रंग पंचमी कहा जाता है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों मे यह उत्सव अलग-अलग विधि तथा कारणों से मनाया जाता है।
ब्रज क्षेत्र में रंगपंचमी को पाँच दिवसीय होली पर्व के समापन का दिन माना जाता है।
महाराष्ट्र में होली के बाद पंचमी के दिन मछुआरों की बस्ती मे यह उत्सव नाच, गाना और मस्ती के साथ मनाने की परंपरा है। तथा विशेष भोजन पूरनपोली अवश्य बनाया जाता है।
ब्रज होली की तिथियाँ 2022–
10 मार्च 2022: लड्डु होली व होली की द्वितीय चौपाई – बरसाना
11 मार्च 2022: रंगीली गली में लठामार होली – बरसाना
12 मार्च 2022: लठामार होली – नंदगांव
14 मार्च 2022: श्री द्वारकाधीश मंदिर होली – मथुरा
16 मार्च 2022: छड़ीमार होली – गोकुल
18 मार्च 2022: फालैन में जलती हुई होली से पंडा निकलेगा
20 मार्च 2022: दाऊजी का हुरंगा – बलदेव
20 मार्च 2022: हुरंगा – जाव
20 मार्च 2022: हुरं
धार्मिक मान्यताओं का महत्व–
होली से एक दिन पहले करें ये आसान उपाय, दूर होंगी आर्थिक समस्याएं-
हिंदू धर्म में होली का विशेष महत्व होता है. होली का इंतजार लोग पूरे साल करते हैं. माना जाता है इस दिन कुछ खास उपाय करने से आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं.
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हिंदू धर्म में होली (Holi 2022) के त्योहार का विशेष महत्व है. ये त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. इस बार होली 18 मार्च को पड़ रही है. वहीं होलिका दहन 17 मार्च को किया जाएगा. ये दिन बहुत ही शुभ माना जाता है. इस दिन लोग विधि विधान से पूजा पाठ करते हैं. ऐसा माना जाता है ऐसा करने से सभी परेशानियां दूर होती है. हर काम में सफलता मिलती है. होलिका दहन (Holika Dahan) वाले दिन को छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है. ज्योतिष (Astro Tips) के अनुसार इस दिन आप कई तरह के उपाय कर सकते हैं. ये उपाय आर्थिक परेशानी को दूर करने में मदद करेंगे. ऐसा करने से आपके घर में सुख-समृद्धि आएगी.
होलिका दहन के दिन करें ये उपाय _गरीबों को दान करें
इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को दान देना बहुत शुभ माना जाता है. इससे आपको अच्छे स्वास्थ्य, धन और शांति की प्राप्ति होती है.
इसलिए इस दिन गरीबों को दान जरूर दें.
आर्थिक समस्याओं को दूर करने के लिए
होलिका दहन के समय अलसी, गेहूं, मटर और चना को आग में डालने से धन की तंगी दूर होती है. वहीं होली के दिन मोती शंख को स्नान कराकर इसकी पूजा करने से धन संबंधी परेशानियां दूर होती हैं.
होली के त्योहार की शुरुआत होलिका दहन से होती है. अगर आप अपने परिवार में शांति के साथ-साथ आर्थिक स्थिति में सुधार चाहते हैं तो होलिका दहन के दिन प्रसाद के रूप में मेवा और मिठाई जरूर चढ़ाएं.
नौकरी और व्यवसाय के लिए
स्नान आदि करने के बाद साफ कपड़े पहन कर होलिका दहन करें. इसके बाद एक नारियल लें. इसे अपने और अपने परिवारपर सात बार वार लें. होलिका दहन की अग्नि में इस नारियल को डाल दें. इसके बाद सात बार होलिका की परिक्रमा करें. इसके बाद भगवान को फल या मिठाई का भोग लगाएं. इससे नौकरी और व्यवसाय में आ रही परेशानी दूर होंगी.
इस उपाय से मनोकामनाएं होंगी पूरी
अगर मेहनत और प्रयास के बाद भी आपको कार्य के परिणाम नहीं मिल रहें हैं तो होलिका दहन की पूजा के दौरान नारियल के साथ पान और सुपारी अर्पित करें. इससे आपको बेहतर परिणाम मिलेंगे.
Disclaimers-
(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है)